(Note for Non-Hindi readers: This post is written in Hindi, about my experience of studying my class 9th in JNV Pandhana, Madhya Pradesh. Let me know if you need an English translation)
आप मैं से किसी को शायद पता नहीं होगा की मैंने अपनी नव्वी कक्षा मध्य प्रदेश मै पडा था| कुछ महीने पहले जब मैं घर गया था अजनक मैंने अपनी नव्वी कक्षा मैं दी हुई कापी देखा तो सभी पुरानी यादे याद आ गयी|
इस लेखन मैं मै उस अनुभव के बारे मैं कुछ लिखूंगा |
हमारी प्राथमिक शाला, जवाहर नवोदय विद्यालय केंद्र सर्कार की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की शिक्षा विभाग से चलाया जाता हैं| ये पाठशाला लगबग देश की हर जिला मैं एक हैं| इस विद्यालय के अनेक विशेषताए हैं, जिनमे से एक हैं, उनकी राष्ट्रीय भाव्य्कता मिशन| ये राष्ट्रीय भाव्य्कता मिशन के अन्दर हर साल कुछ चुनी हुयी छात्राओ को दो विद्यालयों के बीच विनिमय किया जाता हैं| हिंदी बोलने वाले इलाखे से चात्रगन उस इलाखे मैं जायेंगे, जहाँ हिंदी मात्र भाषा न हो, और यहाँ के बच्चे वहां जायेंगे, एक साल की पदाई के लिए.
तो इसी योजना के अंतर्गत मैं और मेरे कुछ साथिया (९ लोग थे, में, भूपेश, गिरिराज, हर्शराज, मंजुनाथ, हरी,वेणु, सुमना, मंगला,रंजीता ) अपनी नववी कक्षा पड़ने के वास्ते जवाहर नवोदय विद्यालय उडुपी जिला (कर्नाटक) से जवाहर नवोदय विद्यालय पंधाना मैं गए थे (जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिला मैं स्तित हैं). ये सन १९९७ की बात हैं. उन दिनों मैं कोंकण रेलवे अभी बना नहीं था| हम लोग मंगलौर शहर से हजरत निजामुद्दीन मंगलादेवी एक्सप्रेस पकडके पुरे दाई दिन की सफ़र तैर करके इटारसी जंक्शन पहुँचते थे और वहां से गाडी या ट्रेन के ज़रिये पंधाना|
पंधाना एक अलग किसम का शहर था| उन दिनों मैं वहां केला सिर्फ ३-४ रूपये हर दज़न की भाव मैं मिल्ता था| मैंने पानी पूरी और कचोडी खाना वहीँ से सीखा...एक रूपये मैं चार-पांच पानी पूरी मिलते थे और उनका स्वाध भी अजीब था, जो दक्षिण भारत के चाट की दूकान मैं बिलकुल नहीं मिल्ता|पोहे, ब्रेड पकोड़े और कद्दू की सब्जी वहां की खास चीज थे|
पंधाना मैं लोग निमाड़ी भाषा बोलते थे, जो हिंदी का एक उप-भाषा कहलाता हैं. वहां की विद्यालय मैं कन्नड़ भाषा सिखाई जाती थी, लेकिन कोई उसे मन लगाकर नहीं सीक्था था| हमारे कन्नड़ प्राध्यापक के नाम था कुरी सर. एक और सर थे, खान सर, जो संगीत पढाते थे| उनके केश राशी के कारन वो बिलकुल उस्ताद जाकिर हुसेन जैसे दीखते थे|
हमने पंधाना मैं करीबन १० महीने बिताये. एक बार कुछ संस्कृतिक कार्यक्रम देने इंदोर भी गए थे, जो मध्य प्रदेश का एक प्रमुख शहर हैं. लगबग १३ साल होगये मेरा मध्य प्रदेश से लौटकर| दुबारा जाने का मौका अभी तक नहीं मिला हैं| मिलते ही मैं वहां दुबारा जाना चाहूँगा. उन दिनों हमारे पास डिजिटल कैमरा जैसे चीज़ नहीं था, तो ये जो कापी की तस्वीर आप देख रहे हैं, वाही मैं एक मात्र निशानी जो मध्य प्रदेश की याद दिलाती हैं|
फिलहाल इतना ही, भविष्य मैं और कुछ लिखने की कोशिश करूँगा | बहुत दिनों बाद हिंदी मैं लिखने का प्रयास किया हूँ, त्रुटिया हो तो कृपया माफ़ कीजियेगा.
Some photos of JNV Udupi * हिंदी लिपि लिखी गयी हैं गूगल भाषांतरी के सौजन्य से *
आप मैं से किसी को शायद पता नहीं होगा की मैंने अपनी नव्वी कक्षा मध्य प्रदेश मै पडा था| कुछ महीने पहले जब मैं घर गया था अजनक मैंने अपनी नव्वी कक्षा मैं दी हुई कापी देखा तो सभी पुरानी यादे याद आ गयी|
इस लेखन मैं मै उस अनुभव के बारे मैं कुछ लिखूंगा |
हमारी प्राथमिक शाला, जवाहर नवोदय विद्यालय केंद्र सर्कार की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की शिक्षा विभाग से चलाया जाता हैं| ये पाठशाला लगबग देश की हर जिला मैं एक हैं| इस विद्यालय के अनेक विशेषताए हैं, जिनमे से एक हैं, उनकी राष्ट्रीय भाव्य्कता मिशन| ये राष्ट्रीय भाव्य्कता मिशन के अन्दर हर साल कुछ चुनी हुयी छात्राओ को दो विद्यालयों के बीच विनिमय किया जाता हैं| हिंदी बोलने वाले इलाखे से चात्रगन उस इलाखे मैं जायेंगे, जहाँ हिंदी मात्र भाषा न हो, और यहाँ के बच्चे वहां जायेंगे, एक साल की पदाई के लिए.
तो इसी योजना के अंतर्गत मैं और मेरे कुछ साथिया (९ लोग थे, में, भूपेश, गिरिराज, हर्शराज, मंजुनाथ, हरी,वेणु, सुमना, मंगला,रंजीता ) अपनी नववी कक्षा पड़ने के वास्ते जवाहर नवोदय विद्यालय उडुपी जिला (कर्नाटक) से जवाहर नवोदय विद्यालय पंधाना मैं गए थे (जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिला मैं स्तित हैं). ये सन १९९७ की बात हैं. उन दिनों मैं कोंकण रेलवे अभी बना नहीं था| हम लोग मंगलौर शहर से हजरत निजामुद्दीन मंगलादेवी एक्सप्रेस पकडके पुरे दाई दिन की सफ़र तैर करके इटारसी जंक्शन पहुँचते थे और वहां से गाडी या ट्रेन के ज़रिये पंधाना|
पंधाना एक अलग किसम का शहर था| उन दिनों मैं वहां केला सिर्फ ३-४ रूपये हर दज़न की भाव मैं मिल्ता था| मैंने पानी पूरी और कचोडी खाना वहीँ से सीखा...एक रूपये मैं चार-पांच पानी पूरी मिलते थे और उनका स्वाध भी अजीब था, जो दक्षिण भारत के चाट की दूकान मैं बिलकुल नहीं मिल्ता|पोहे, ब्रेड पकोड़े और कद्दू की सब्जी वहां की खास चीज थे|
पंधाना मैं लोग निमाड़ी भाषा बोलते थे, जो हिंदी का एक उप-भाषा कहलाता हैं. वहां की विद्यालय मैं कन्नड़ भाषा सिखाई जाती थी, लेकिन कोई उसे मन लगाकर नहीं सीक्था था| हमारे कन्नड़ प्राध्यापक के नाम था कुरी सर. एक और सर थे, खान सर, जो संगीत पढाते थे| उनके केश राशी के कारन वो बिलकुल उस्ताद जाकिर हुसेन जैसे दीखते थे|
हमने पंधाना मैं करीबन १० महीने बिताये. एक बार कुछ संस्कृतिक कार्यक्रम देने इंदोर भी गए थे, जो मध्य प्रदेश का एक प्रमुख शहर हैं. लगबग १३ साल होगये मेरा मध्य प्रदेश से लौटकर| दुबारा जाने का मौका अभी तक नहीं मिला हैं| मिलते ही मैं वहां दुबारा जाना चाहूँगा. उन दिनों हमारे पास डिजिटल कैमरा जैसे चीज़ नहीं था, तो ये जो कापी की तस्वीर आप देख रहे हैं, वाही मैं एक मात्र निशानी जो मध्य प्रदेश की याद दिलाती हैं|
फिलहाल इतना ही, भविष्य मैं और कुछ लिखने की कोशिश करूँगा | बहुत दिनों बाद हिंदी मैं लिखने का प्रयास किया हूँ, त्रुटिया हो तो कृपया माफ़ कीजियेगा.
Some photos of JNV Udupi * हिंदी लिपि लिखी गयी हैं गूगल भाषांतरी के सौजन्य से *
Thoroughly enjoyed reading your post in Hindi and you do write good hindi.
ReplyDeleteधन्यवाद मृदुला जी| हमें फक्र हैं की आप ने हमारी लिखावट पसंद की|
ReplyDeleteNice one Shrinidhi...
ReplyDeletewah Srinidhi, nice to see ki aapne Hindi mein bhi likhna shuru kiya, kuch kavitaye ho jaye? kya khyal hai?
ReplyDeleteI think I need english or Kannada translation !
ReplyDeleteI find it difficult to read in devanagari script,hence converted this to kannada using scriptconv.googlelabs.com then read hindi in kannada script:)
ReplyDeleteಸಂದೀಪ್ ಕಾಮತ್...
ReplyDeleteYou're genius!
ವಿ.ರಾ.ಹೆ...
Ok, will try to translate and add at the end...
Rohit,
Will try poets, but be prepared for scary and horrible ones
Sanjeev
Thanks
Dhanyavad. Bahut achchha hai
ReplyDeleteDear Shrinidhi,
ReplyDeleteAapko yahan changes karna hoga. Main apako is topic ko correct karke bhejti hun. Isme kahin kahin hindi likhne mei galti hui hai and if you feel fine then you can edit in your post.
please read and then delete this comment.
rgds.
मेरी हिंदी सुधरने की तकलीफ लेने के लिए मैं आप से आभारी हूँ| आप ज़रूर सही किया हुआ लेखन रवाना कीजिए
ReplyDeleteSrinidhi,
ReplyDeleteGood write up!! It was real nostalgic moment for me.It took me to my child days in Navodaya Vidyalaya at Bohani Narasingpur District! I was there from 1992-94.
Thanks for such a nice writeup!
Shankar
Nice nostalgic experience and being a MP born , would like you to read my travelogue (Journey down the memory lane) of visiting all the school two years back after 50 years which fetched me an entry in to Limca book of records!
ReplyDeletevery nice sir ji...u really refreshed our navodaya life again..
ReplyDeleteWith Regards
Balram
www.jnvalumni.blogspot.com
Thanks all for comments, sorry for delayed reply
ReplyDeleteShankar: Thanks for sharing your experience
SRA Sir:
Congrats on your entry into Limca Book of Records... Will read your posts
hi srinidhi so nice to see you writing in hindi that too almost perfect, one thing is very true we never intend to learn kannada and now also i now only numbers upto 10 only.
ReplyDeletegod bless
Ajay Galar
Dhanyavad Ajayji...
ReplyDeleteDo learn Kannada, its easy.. word by word..